वाया जुलाई की एक रात
इस साल अपने शहर में बारिश खामोश सी बरस रही है. गांव से आने वाले संदेशों में अब भी लू की तपन और आषाढ की उमस है. इधर आसपास तेजी से दड़बेनुमा मकान बन रहे हैं और लगता है कि हवा में घुटन लगातार बढ़ी है. बार्नबे जैक जुलाई के आखिरी हफ्ते में इस दुनिया से चला गया. एटीएम हैकर जैक हमारे जीवन में तेजी से जगह बनाते जा रहे पेसमेकर, आईसीड तथा इंसुलिन पंप जैसे उपकरणों के हैकिंग संबंधी खतरों के प्रति आगाह कर रहा था और अपने घर में मृत पाया गया. इंटरनेट की आजादी के लिए लड़ रहा आरोन स्वार्त्ज पिछले साल चला गया था. अपना मीडिया जब बाजार और सरकार की खबरों से चल रहा है वैकल्पिक समाज और व्यवस्था की हर खबर कहीं दब गई है. आस्वाद और मत की भिन्नता को स्वीकारने वाली यह दुनिया कितनी तेजी से विकल्पहीन होती जा रही है?

ग्रीनटी के अपने मग के साथ इन उदासियों को समेटे बालकनी से भीतर आ जाता हूं. भीतर से और भीतर जाने की कोशिश.. सफल नहीं होती. किसी सयाने कहा था कि लौटना कभी भी हमारी मर्जी से नहीं होता. हर चीज जन्म लेने से पहले पकती है. बिना पके जन्म नहीं. यही नियम है. इसी तरह खर्च होते दिनों और फिजूल होती रातों के बीच अपने लेखक भाई दुष्यंत का कहानी संग्रह ‘जुलाई की एक रात’ आया है. इसमें वे कहते हैं कि उदासियों की कोई रुत नहीं होती. वे तो थार की आंधियों की तरह हर मौसम में आती रहती हैं नाम बदल बदल कर. गर्मियों में लू तो सर्दियों में डांफर (तेज सर्द हवा) और बारिशों में झंखेड़े (तूफानी हवा) के रूप में!
दुष्यंत की कहानियां भी इन्हीं रुतों की बयानी है जिनमें व्यक्तिगत संघर्ष का ताप और उदासियों व बिछोड़े की नमी साथ साथ चलती है. उनकी तीन जोरदार कहानियों में गांव शिद्दत से है तो बाकी में शहरी विशेषकर युवा जीवन के तनाव, अंतरर्विरोध का ताना बाना. इधर के सालों में कुछ नामों ने कहानी की सभी प्रचलित परिभाषाओं और फ्रेमों को तोड़कर लिखा है उनमें दुष्यंत भी आते हैं. कहानी की युवा लहर की दशा व दिशा क्या कहती है यह समझने के लिए इन कहानियों को पढा जाना चाहिए.
अपने इस समय के धुरंधर कथाकार उदयप्रकाश ने प्राक्कथन में लिखा है कि दुष्यंत की कहानियां जोखिम भरी निडरता के साथ हिंदी के समकालीन कथा लेखन के सामने अनुभव, स्थापत्य, भाषा और शैली की नयी खिडकियां खोलती हैं. ये कहानियां उत्तर आधुनिक वास्तविकताओं की किस्सागोई है. सच में! दुष्यंत छोटे छोटे क्षणों में बड़ी बातें रचते हैं और फिर किस्से के रूप में कहते चले जाते हैं. यह उनकी खासियत है और आधार भी. रिल्के ने एक बार कहा था कि कोई रचना तभी अच्छी होती है जबकि वह अनिवार्यता से उपजती हैं. दुष्यंत की कहानियां शायद उत्तर आधुनिक जीवन की उन्हीं अनिवार्य हो चुकी निराशाओं, वितृष्णाओं से निकली हैं. इन्हें दर्ज किया जाना चाहिए कि अभी दिलों में उदासियों के मेले हैं.
(जयपुर में रहने वाले पत्रकार लेखक दुष्यंत की हिंदी में यह तीसरी ‘किताब जुलाई की एक रात’ पेंगुइन ने प्रकाशित की है. इसे आनलाइन यहां खरीदा जा सकता है.)
विकल्पहीन होती दुनिया.सच है पृथ्वी भाई पर ऐसे में अपनी किसी प्रिय किताब के पास जाना एक बेहतर विकल्प है.दुष्यंत जी की इस नई किताब का स्वागत.
सही है संजय सा, दोस्त लिखते रहें और छपते रहें इससे अच्छा क्या हो सकता है हमारी दुनिया में.