लोहे के उस पुराने से दरवाजे पर रंग रोगन हो चुका है. दरवाजे और घर के बीच छोटा दालान है. एक चौकी है. दरवाजे के बायीं ओर बने आळे यानी लैटर बॉक्स में कागजों का ढेर लगा है.. पोस्टकार्ड, लिफाफे व अंतररदेशीय पत्र.. और ज्यादातर पर मेरा नाम. कुछ खत बारिश से भीगकर पीले पड़ चुके हैं, शब्दों पर समय की धूल जमी है.. ऐसी कुछ चिट्ठियां दायीं और कचरे के ढेर में तथा बाहरी कमरे के फर्श पर भी पड़ी हैं. डाकिया चलते फिरते फेंक गया होगा.
एक एक कर खत इकट्ठे करता हूं. ओ माय गॉड..! इस पते पर तो मैं कई साल से नहीं हूं. एक बार छोड़ने के बाद कभी आना नहीं हुआ. बाई बताती है कि कई साल मेरे नाम की चिट्ठियों की बारिश होती रही. फोन आते रहे. उसे न तो मेरा नया पता मालूम था न नंबर. इसलिए क्या करती. एक पोस्टकार्ड देखता हूं, संपत की ही लिखाई थी;उसने सिर्फ इतना लिखा था- तुम चांद पर भी पहुंच जाओ तो नहीं सुधरोगे. अमर ने बहन की शादी का कार्ड भेजा था तो किशन ने भाई के नौकरी लगने की बात बताई थी. बेतरतीब खतों के बंडल को नाक के पास लाता हूं तो वही जानी पहचानी खुश्बू हावी होने लगती है. कितने दिलों ने, कितनी हसरतों के साथ इन शब्दों को पिरोया … धम से बाहरी चौकी पर बैठ जाता हूं.. गला भरने लगता है…
आर यू ओके.. आर यू ओके, क्या हुआ; उसने शायद यही कहकर मुझे झिंझोड़ा तो अकबका सा उसकी ओर देखता रहा. क्या नींद में बच्चों की तरह सुबकते हो.. कहकर उसने रजाई मेरे ऊपर कर दी. बाहर वाले कमरे से रोशनी बेडरूम में आ रही है. चारेक बजे होंगे. पानी पीने की इच्छा होती है. उठकर किचन में चला आता हूं.
ये कैसा सपना था. कैसे ख़त जो पुराने पते पर आते रहे . क्या सच में पुराने पतों पर हमारे नाम की चिट्ठियां आती हैं. अपन तो वैसे भी बंजारे हैं. कमोबेश हर साल घर गांव बदलते रहे. फिर जब अपना घर हुआ तो कुछ बचपन के, पुराने मित्रों के खत आते थे जिन्हें मां संभाल कर रख लेती. अब वहां भी खत नहीं आते. सबको पता है कि मेरा पता बदल गया. जिनको नया पता मालूम है वे मेल, एसएमएस करते हैं. बाकी फेसबुक पर हैं. माफी चाहूंगा, लेकिन इनमें से ज्यादातर के लिखे में न तो वह खुशबू होती है न भाव. सोचता हूं क्या यह नास्टेलाजिया भर नहीं है.
शायद नहीं, कोई तो होगा जो हमारे नये पते की तलाश में आज भी पुराने पते पर ख़त डालता होगा, चिट्ठियां लिखता होगा. हमने खुद ऐसा किया है और जवाब नहीं आने पर कभी डाक विभाग तो कई बार बदलते समय को कोसा.. अब लगता है कि शायद उसका पता बदल गया होगा या हो सकता है कि उसने भी मेरे पुराने पते पर ख़त डाला जो मुझे मिला नहीं. कई यारों से शिकायतें इस वासंती सुबह में मेरी आंखों में धुलने लगी हैं. सोचता हूं उस पुराने पते का एक चक्कर लगा ही आऊं शायद आपने खत लिखा हो.
जूनूं की ये कौनसी मंजिल है बता मुझको
तुझको ख़त लिखता हूं और अपना पता लिखता हूं.
(शायर सागर अदीब, फोटो Rumi Qoutes से साभार)
Very nostalgic 😦
रुला दिया….
Bahut Khoobsurat Prithvi.
zordaar
जूनूं की ये कौनसी मंजिल है बता मुझको
तुझको ख़त लिखता हूं और अपना पता लिखता हूं.
rachna bahut achchi hai… lekin yah do panktiyan to sab par bhari hain 🙂 bahut hi achchi lagin ye panktiyan.
…कोई तो होगा जो हमारे नये पते की तलाश में आज भी पुराने पते पर ख़त डालता होगा…क्या जाने उसका पता मिल ही जाए /रोज एक खत भेजता हूँ हवाओं के सहारे
छू लेने वाला पीस…
नहीं भाई मैंने कोई पत्र नहीं लिखा, ईमेल के जमाने का ही हूं… 😉
Great !!!
Prithvi Ji
Wah.. ye lekhni ki jadoo nahi to aour kya h?
Prithvi Jee
maine bhi jab khat likhe the to wo aapke purane pate par pahunche lekin unhone aapka har naya pata dhundh liya tha.
Kisi kavi ne likha hai
Charchaon mein waqt purana achchha lagta hai
Kabhi kabhi ye naya zamana achchha lagta hai
Padh likhkar bahut deegriyan leli hamne
Par ab bhi dadi nani ka dhamkana achchha lagta hai
बोल बोल कर पढ़ा …..मेरी आवाज़ में आपके भाव थे …इतना अच्छा पढ़ने देने के लिए शुक्रिया