सावनी हवाओं से खिलते-खूबसूरत होते मौसम में
तुम्हारा इस तरह दबे पांव चले जाना
जैसे रुकमा चली गईं
मांड की अपनी सारी रागों, सुरों को साथ लेकर
मेरे संगीत देश की खेजड़ी को बहुत उदास कर जाएगा.
तुम्हें अभी खिलना था
मैपल लीप पर सुर्ख लाल रंग बनकर
शरीर के गोदनों, मन की पीड़ाओं, उदासियों के गहरे समंदर के साथ
गाना था जिजीविषा का कोई नया तराना
कि तुम कुछ दिन और रुकती एमी.
हम ढूंढते रिश्तों से मजबूत डोर
दोस्ती के जंगल, तमन्नाओं की घाटियां
खुशियों के डिब्बों में अजब सा दर्द बांटते
इस समय समाज का कोई विकल्प भी होता हमारे सिस्टम में
दूर पहाड़ों पर उगता प्रेम से बड़े नशे वाला पौधा
हम नये सुर रचते
रुकमा अरणी गाती
तुम्हारे जैज के नगरी में
आने थे कई और वासंती मौसम
कि तुम कुछ दिन और रुकती एमी.
(जैज, आरएंडबी की प्यारी सी गायिका एमी वाइनहाऊस 27 साल की जिंदगी के साथ विदा हो गई है. राजस्थानी मांड गायन की सशक्त हस्ताक्षर रुकमा का हाल ही में तंगहाली में बाड़मेर में निधन हो गया.)
…………..दूर पहाड़ों पर उगता प्रेम से बड़े नशे वाला पौधा……………. प्रिथ्वी जी….. एक बार फिर …. तय हो गया….. आप की काव्य क्षमता …… अद्ध्भुत है…. बहुत ही बढ़िया….जय हो बस….!
पृथ्वी जी…
एक संवेदनाओं से भरपूर कविता के लिये बधाई स्वीकारें..
रुकमा के लिये हर राजस्थानी संगीत और लोक कला प्रेमी के ह्रदय में दर्द है..
चाइनीज बाजारों के इस दौर में तनिक ठहरकर सुनने वाली धुनें अप्रासंगिक हैं..
आभार.
तुम्हें अभी खिलना था
कि तुम कुछ दिन और रुकती एमी….
बहुत ही निश्छल भाव…
भावपूर्ण……….
वास्तव में एक और कलाकार हमे छोड़ कर चला गया है. उनकी गायकी को नमन और भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे….