एक अगस्त 2010
की उस शाम
सेम से बंजर हुई जमीन पर उगे,
विलायती कीकरों
के बीच से गुजरते हुए
पता चला कि
रंगमहल के कुछ जोगी ‘बीण बाणा’ छोड़
करने लगे हैं दलाली
और घग्घर के किनारे
मणों टन माटी के नीचे
दब गई संस्कारों की एक विरासत.
हम दोनों निकल आए थे
वहां, जहां पानी की एक नदी
मिलती है रेत के समंदर से
सदियों पहले जहां थी एक बस्ती
खिले थे फूल और तिरे थे कुछ तराने.
तो उस शाम हमने बात की
कविता छोड़ गए मित्रों
और पद्य के नाम पर
कहानी कर रहे कुछ लोगों की,
शिव बटालवी की कविताओं में
उग आई ‘कंटीली थोर’
अमृता प्रीतम के लेखन में टीसती
पीड़ा
राजेंद्र यादव, मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा
हसन जमाल
व दिल्ली में नहीं रम पा रहे संजीव की;
हमारी बातों में रहे
शमशेर, निराला, मुंशी
मीरा, बुल्लेशाह, कानदान सिंह
तथा
80 का काशी की
’गालीगलौज पूर्ण’ प्रस्तावना
अज्ञेय के कबीर न हो पाने की सीमा
काफ्का के निबंध
100 रुपये में दस किताबों की
मायावी योजना
ब्लागों की बढती महत्ता
फेसबुक पर क्रिएटिविटी व
बेवकूफाना हरकतों, समय बर्बादी
पर भी हो गई कुछ टिप्पणियां.
राकेश शरमा, दिनेश निर्मल की
उपलब्धि व त्रासदियां
खुमार बाराबंकवी की चिंता
नीरज से साक्षात्कार
कागद, बादल, जनक, आलोक
राजस्थानी साहित्य
व गांव परलीका,
ओम थानवी, उदयप्रकाश, त्रिभुवन,
सुभाष सिंगाठिया, सतीश छींपा, दुष्यंत
हरप्रीत, नीरज दइया, सुरेंद्रम, सत्यनारायण
कई बड़े- छोटे, जाने अनजाने नाम
गुंथ गए थे हमारे वार्तालाप में.
उस ढलती शाम
जब दक्षिण पूर्व में बिजली चमक रही थी
और एक गडरिया लौट रहा था
कुछ भेड़ बकरियों के साथ
हम बड़ोपल गांव के बाहर
एक कोठे (कमरे) के सामने सड़क पार खड़े थे
जिस पे ’यहां ठंडी बीयर मिलती है’
लिखा था.
तब
अच्छा मौसम, तन्हा आलम
जैसा सब कुछ था हमारे पास
बस थोड़ी सी नमकीन के सिवा.
behad achhee kavitaa hai yah
आनन्दित कर दिया…यादों की महक लौट पड़ी एक बार फ़िर….
…matlab ki kul milakar zindgi ka pura saman tha us sham..namkeen ke siva…
Namkeen Saage lege jawantaa……aur mazo aa jawanto…
Ek Agust Ki Shaam
Sahityakaaron ke naam…
Shiv ki Kandiali Thore ke saath Khejadi ki Beti ka zikr bhi ho jata to lutf aa jata…
Bahut khoob, jari rahiye…
Peace,
Desi Girl
nice
bhawpooran kavita… yah sahajata durlabh hai…. parlika bhi aa jate….?
great prithvi ji, aapki chitratmak shelly behad acchi lgi,btalvi ka jikr kr aapne ek bar kla phle region bad ka prichay diya.great
regards
jaswant s. saharan
Waah kitni anuthi kavita
kitni adhbhut upmaayen
kitne sunder pryog
बहुत जोरदार !
सब कुछ तो समेट लिया आप ने
अपनी छोटी सी यात्रा में
अभी तो यात्रा शेष है
न जाने
क्या क्या समेटेंगे
कि्तना समेटेंगे !
nice kavita
संस्मरण रोचक है
दुर्लभ शाम रही आपकी.. वाह
मन आनन्दित हो गया.
bahut khoob sirji.
Are sir lahta hai Ganganagar aakr chale bhi gaye our hame milane ka mouka hi nahi dia
Vaise is kavita main aapne bahut gahra chintan vyakt kia hai kanita achcchhi lagi
bahut nice likha
Prithvi G,
Yaadon ko khoob sanjoya .
Alok ji ne bataya ki Dahiya jee bhi Kendriya Vidyalaya mein hi PGT (Hindi) hai. Shayad Bikaner mein .
Bahut dinon baad aaj net par bethne ka samay mila.
ISHWAR
यही तो बात है…भाई !