जेठ माह और उससे पहले की गर्मी में सूख सिकुड़ गए सपनों के बीजों को आषाढ़ की पहली बारिश में धो भिगोकर सपनों की चद्दर पर डाल दिया है. हवाओं की नमी से कुछ बूंदें पलकों पर जमी हैं. खेत में बाजरा बोना है, सपने भी!
बाजरा ही क्यों? शायद थार में सावणी (खरीफ) की फसलों का जिक्र बिना बाजरे के शायद ही पूरा हो. यहां यह भी कह सकते हैं कि सावणी की फसलों में बाजरा ही प्रमुख है. चौमासा शुरू होते ही, पहली बारिश के साथ थार का किसान अगर हळ पंजाळी, कस्सी लेकर खेत में पहुंचता है तो पहली बड़ी फसल बाजरा ही होती है. आषाढ की फुहारों के साथ ही बाजरे के साथ नये साल और जमाने की उम्मीदों के बीज खेतों में डाल दिए जाते हैं. थार में बाजरे के साथ ज्वार, मोठ, मतीरा, काकड़, काचरी, केर, टिंडसी, लोइया, तरबूज.. कितनी ही फसलों, फलों, हरी सब्जियों की आगवानी होती है और गर्मी में मुर्झाया रेगिस्तान धीरे धीरे हरियाली की चादर ओढता है.
राजस्थान में बीकानेर और उसके बाद दक्षिण पूर्व में बढें.. जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, चुरू, सीकर यानी इधर मारवाड़, मेवाड़ का पूरे इलाके के लिए ही रबी की बड़ी फसल बाजरा है. मोटा अनाज है, कम पानी में पकने वाला. कच्चा बाजरा भी हरे चारे के रूप में काम आता है. पकने के बाद सिट्टे तोड़ लिए जाते हैं और बचे डंठल या डोके काम आते हैं. बाजरा बोते ही खेतों में हलचल शुरू हो जाती है. बुवाई के बाद पहले खोदी, गुड़ाई फिर रखवाली चिडि़यों से, और पक्षियों से. बाजरा थार के जनजीवन से इतना घुला मिला है कि अनेक कहावतें लोकगीत इससे जुड़े हैं. बाजरे का जिक्र आते ही.. बाजरिया थारौ खीचड़ो लागे घणौ स्वाद जैसे गीत सहज ही दिमाग के स्टीरियो पर बजने लगते हैं.

बाकी रही बाजरे की रोटी की बात. बाजरे की रोटी की बात करना जितना आसान है उसे बनाना और पचाना दोनों उतना ही मुश्किल. हर किसी का पेट बाजरे को पचाने की क्षमता रखता हो जरूरी नहीं. बाजरे का खीचड़ बनाना आसान हो सकता लेकिन रोटी बनाना नहीं क्योंकि बाजरे का आटा गेहूं की तरह एक साथ नहीं गूंथा जा सकता. हर रोटी के लिए अलग से आटा गूंथना पड़ता है और रोटी को हाथों से ही पलोथना होता है, चकला बेलन काम नहीं आते. बाजरे से और क्या बनता है.. ? राब या राबड़ी, खीचड़, सुखली और ढोकली भी बनती है. बाजरे के आटे में घी और गुड़ मिलाकरा ‘कुलेर’ बनाई जाती है. लोकदेवता गोगा महाराज को कुलेर का नैवेद्य चढ़ाते हैं. बाजरे का होला भी बनाया जाता है. भेन बेटियां गणगौर का बनोरा निकालती हैं तो उसमें भी बाजरे की घूघरी का प्रसाद रहता है. बाजरे के डोके, सूखे चारे के रूप में पशुओं के काम तो आते ही हैं ढोंकळे बनाते समय भी उनका इस्तेमाल किया जाता है और उनकी खुश्बू ढोंकळों के स्वाद में चार चांद लगा देती है! आमतौर पर कहा जता है कि बाजरे में घी का काम नहीं होता लेकिन अपना मानना है कि देसी घी वो भी थोक में नहीं हो तो बाजरे की रोटी खाने का आनंद ही नहीं है. हां अगर रात की रोटी सुबह दही में चूर कर खा रहे हों तो बात अलग है. बाजरा नहरी भी होने लगा है लेकिन स्वाद व पौष्टिकता के हिसाब से बारानी बाजरे और उसके खीचड़ का कोई विकल्प नहीं है.
इंटरनेट से मिली जानकारी बताती है कि बाजरा मोटे अन्नों में सबसे अधिक उगाया जाने वाला अनाज है. इसे अफ्रीका और भारतीय महाद्वीप में प्रागेतिहासिक काल से उगाया जाता रहा है, यद्यपि इसका मूल अफ्रीका में माना गया है और यह भारत बाद में आया. हालांकि इसके भारत में इसे इसा पूर्व २००० वर्ष से उगाने के प्रमाण मिलते है ,इसका मतलब है कि यह अफ्रीका में इससे पहले ही उगाया जाने लगा था. बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना, ऊँचा तापक्रम झेल जाना ,यह अम्लीयता को भी झेल जाता है.
पंजाबी के एक लोकगीत की पंक्तियां…
माही मेरे दा पकिआ बाजरा
तुर पई गोपीआं फड़ के
खेत जा के हूकर मारी
सिखर मने ते चड़ के
उतरदी नूं आईआं झरीटां
चुंनी पाट गई अड़ के
तुर परदेस गिउं
दिल मेरे विच वड़ के.
hello prithvi ji, Super views…..
jangir kumar rajesh
SriGanganagar
वाजरे की बात ही कुछ और है.
जबरी याद दिरायी बाजरियै री। वा सा वा पृथ्वीजी।
बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो सुवाद
लागै घणो सुवाद।
ढोकळा, घूघरी अर खोडी री याद तो रूं रूं मांय समागी। राबड़ी रा सुरड़का तो सुरड़का सा ई हुवै सा। बाजरी रो रोटी अर फोफळिया, फळियां रो साग, ऊपर चूंटियो घी। के कैवणी बात।
—
श्रेष्ठ अभिव्यक्ति, बधाई।
बाजरे की रोटी याद दिला दी..
Bahut Badia.
वाह सा पृथ्वी जी….घणी याद कराई..
लेकिन लगता है नई पीढी के लिये ये स्वाद धीरे धीरे कहीं गुम होते जा रहे हैं…
ये स्वाद , ये खुशबुएँ बनी रहें…यही कामना है..
आपका आभार.
बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो सुवाद 🙂
आप तो गांव घर की बातों का चित्रण ऐसा करते हैं की ब्लॉग पर गांव और वहां के रीति रवाज ज़िंदा हो उठते हैं
In marwar Bajari ki roti is called Hogara.
It is very delicious particularly with butter oil and pulses.
A Haryanavi folk
Jee ko janjal Maharo Bajaro layo-2
Jad main bajre nae kootan baithi-2
Ur ur jae mora bajara-2
Chal teri kasam bajra
chal meri kasam baajra
A panjabi folk
Baajre da sitta ni ari-e tali te marore-a
Some body should complete it
बाजरियां हरियाळियां, बिचि बिचि बेलां फूल।
जउ भरि वूठउ भाद्रवउ, मारू देस अमूल॥
राजस्थानी की प्रसिद्ध रचना ‘ढोला-मारू रा दूहा’में मालवणी को ढोला मरुधरा की महिमा बता रहा है….. बाजरियां हरी हो गई हैं और उनके बीच-बीच में बेलों में फूल लगे हैं। यदि भादों भर बरसता रहा तो मारू देश अमूल्य मतलब अनुपम शोभा होगा।
इसी प्रकार रामस्वरूप किसान के एक दूहे में ‘कातीसरे’ का बखान ऐसे हुआ है…
काचर लाग्या गोटिया,
बेलड़ल्यां लड़लूम।
तोरूं चढरी जांटियां,
टींडसियां री धूम॥
किसान ने बाजरे की फसल को क्रांति के आह्वान के रूप में बरत लिया…
बीजो ना इब बाजरी,
बीजो हिवड़ै आग।
क्रांति फसलां काटस्यां,
किरसा काती लाग।
excellent
जोरदार लेख !
लोक्संस्कृति रो रंग हबोळा मारै !
खीचडा़ अर खीचड़ में
ज़मीन आसमान रो फ़रक हुवै ।
खीचड़-खीचड़ो शब्द तो
शुभ काम में बपरा सकां
पण खीचड़ा नीं !
खीचडा़ मरियौड़ै लारै १२ दिनां ताईं करीजै
अर आं १२ दिना में खीचड़ौ एक दिन ई
नीं बणै-हर दिन फ़ुरवां मिठाई बणै ।
इणी नैं खीचड़ा कै’ईजै !
है नीं जोरदार बात ?
एक कांई बाजरियै पर मोकळा लोक गीत है-
-“बाजरे दा सिट्टा अस्सां तळी ते मरोड़या….”
-“बाजरिया थारो खीचड़्ड़ौ लगै घनौ सुवाद….”
bhaai omji, kheechda ar kheechde ro fark sahi bataayo hai. duji baat abe peli vaalo kheechdo reyo koni jad sinjhya ri vagat nit ro khichdo banto. abe khichdo ek etihaas bangyo. moth baajri re kheechde me abe ni to vaa desh baazri hai ar ni hi deshi moth. sagla badalgya hai. kisan bhi abe nuve beej vapraas saru kar diyo hai. deshi beej ri thod abe saathi motha ro beej beeje. jiko saath dina me tyaar vhe jaave. pan un me vo swaad ni vhe. fagat naam ro moth vhe. ini bhaant deshi baazre ri thod bhi shankar baazro beezijan laaggyo. jin bhaant saglo kaalo-kaalo til ni vhe uni bhaat peeli-peeli sagli baazri ni vhe. haan naam su baazri vhe pan un me ve gun ni vhe jika deshi baazri me vhe. gujrat, haryana ri baazri bhi athe ghani bikan me aave. pan deshi baazri athe dhora dharti me ij thaavka loga re kane mile. harek thod ni mile. laarle dina delhi ri ek high profile party re saaru bikaane su 50 kg. deshi baazri bhejiji. jin raa bhaav haa. 25 rupia kilo. haan saa, deshi baazri in mol me mil jaave to hi kam jaanjyo. mhe bhaai prithvi ji ne in saaru ghani badhaavi devni chaavu ke baazri ar in re kheechde ne vaa net par laay ne in ro maan badhaayo. pan aaj re jug me jin bhaant loga aapri vaani badal li to moth bazri bhi vaane bisa hi milela.
Delhi main bhi gaon ko jinda rakha hai aapne…
Yeh gaon jaise KUANO nadi hai..jahan bhi jao sath chala aata hai…
Achha likha, badhai.
bajra ri bata karke aaj mahana mahara gav ka din yaad dila diya
nice story bhadhay