उत्तर पश्चिमी राजस्थान में तूड़ी, चारे नीरे की कमी और संकट पशुधन पर भारी पड़ रहा है. लगातार अनावृष्टि, नहरों में कम पानी के चलते पशुओं के चारे का गंभीर संकट हो गया है और पशु पालना आम लोगों के बस में नहीं रहा. लोग पशुओं को यूं ही खुला छोड़ रहे हैं या औने पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं. पशुपालक से लेकर दोधी, आम किसान और आम लोग और पशुधन सभी परेशान हैं. पशुओं के ठाण खाली होने लगे हैं. हारे बुझ गए हैं और दूध की हांडी छत पर रख दी गई है.
दरअसल पंजाब, हरियाणा से लेकर राजस्थान या कि पूरे उत्तरी भारत में तूड़ी (गेहूं निकालने के बाद बना चारा) व पराळी (धान के डंठलों की कटाई से बना चारा) पशुपालन में महत्वपूर्ण है और पशुधन सूखे चारे पर मुख्यत: इसी पर निर्भर करता है. देश का यह हिस्सा पिछले कई साल से विडंबनाजनक हालात से गुजर रहा है. मेह पानी तो कम हो ही रहा है, नहरी प्रणाली भी विफलता के कगार पर पहुंच गई है. बड़े या अच्छी खासी जमीन वाले किसान, जमींदार तो अपने पशुओं के लिए तूड़ी, पराळी बचाकर रख लेते हैं लेकिन आम पशुपालक संकट में हैं. संकट आम लोगों पर भी है. दूध मिलता नहीं, मिलता है तो घी की तरह महंगा हो गया. थैली वाला दूध दूर गांवों में पहुंचा नहीं है. हालत यह है कि गाय भैंस पालने वाले बकरियां पालने की सोचने लगे हैं.

पिछले साल गेहूं निकालने (हार्वेस्टिंग) के समय तूड़ी के भाव लगभग 100 रुपए प्रति कुंटल थे. अब यही 400-500 रुपए प्रति कुंटल बिक रही है. दूर दराज के गांवों चकों में तो इसके दाम और भी अधिक हैं. ग्वार मूंगफली का नीरा भी नहीं हुआ है. कई किसान गंगानगर, हनुमानगढ़ जिले के कुछ हिस्सों से पराळी खरीदकर ले जा रहे हैं. उसके दाम भी 200 रुपए प्रति कुंटल तक हैं. सरसों की नई फसल फागण के बाद आएगी तो शायद थोड़ी बहुत पळूं (सरसों की टहनियों, पत्तियों से बना चारा) मिलेगी. गेंहू की नई फसल आने में समय है.

इलाके में आम पशुपालक के लिए संकट के दिन हैं. जिनके बस की बात नहीं रही उन्होंने अपने पशु खुले छोड़ दिए हैं और इसका सर्वाधिक असर गऊओं व बछड़ों पर पड़ा है. क्षेत्र में आवारा घूमने वाले पशुओं में सबसे अधिक संख्या इन्हीं पशुओं की है. यहां भी संकट है. पशुओं को खाने के लिए खेतों में भी कुछ नहीं है. खेत खाली हैं. जहां थोड़ी बहुत खेती है वहां वे पहुंच नहीं सकते. पशुओं की दुर्गति हो रही है.
राजस्थान के उत्तर पश्चिम सिरे से शुरू करें तो जैसे जैसे दक्षिण पूर्व की ओर बढेंगे हालात और विकट होते जाएंगे. गंगानगर हनुमानगढ़ जिले में ही भाखड़ा नहर क्षेत्र में हालात कुछ ठीक हैं वरना इंदिरागांधी नहर क्षेत्र में तो हालात विकट हैं. आगे बीकानेर, चुरू या सीकर की ओर बढते बढते हालात कहीं न कहीं भयावह होते जाते हैं. आगे भी हालात सुधरेंगे, नहीं लगता. पानी है नहीं और गेहूं आदि का बुवाई क्षेत्र तुलनात्मक रूप से घट रहा है. सरकार ने कई इलाकों में ‘ना लाभ ना हानि’ की दर पर चारा डिपो खोलने की घोषणा की है.
Nice.
अकाल का प्रभाव दिखने लगा है .. संकट आ चुका है.
good history of bagri culture
समस्या वाकई विकराल है..
मान गए पृथ्वी जी, महंगाई से इसानों का खाना ही नहीं लगता है जानवरों का खाना भी मंहगा होता जा रहा हैं …लिखते रहिए ताकि “कंकड” कभी बिखरे नहीं…../