इक सभ्यता थी जो दुनिया में सबसे पहले विकसित होने वाले समाज से बनी. इक बस्ती थी जहां दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक हड़प्पा व मुअन जोदड़ो ( मोहन जोदड़ो, मोहें जो दड़ो, मुअन जो दरो) अथवा सिंधु घाटी कालीन सभ्यता पली फूली और मानों अचानक लुप्त हो गई. उसी बस्ती के अवशेष कालीबंगा में मिले. राजस्थान के हरियाणा सीमा से लगे हनुमानगढ़ जिले में पीलीबंगा तहसील में आता है यह गांव. तहसील मुख्यालय से एक सक पूर्व की ओर जाती है. घग्घर नदी पर बना पुल और उसके बाद बायीं ओर एक गांव. पहले कालीबंगा संग्रहालय, फिर थेड़. सड़क के बायीं ओर एक टीले में दबा एक गांव का इतिहास और सामने दायीं ओर एक जीवंत गांव.

हड़प्पा मुअन जो दरो या सिंधु घाटी सभ्यता के लगभग 100 स्थलों का अब तक पता चला है उनमें कालीबंगा क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. मुअन जो दरो व हड़प्पा के बाद कालीबंगा, इस सभ्यता का तीसरा बड़ा नगर सिद्ध हुआ है. इसके एक टीले के उत्खनन में तांबे के औजार, हथियार व मूर्तियां मिलीं जो बताती हैं कि यह मानव प्रस्तर युग से ताम्रयुग में प्रवेश कर चुका था. यहां से सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता की मिट्टी पर बनी मुहरें मिली हैं, जिन पर वृषभ व अन्य पशुओं के चित्र व र्तृधव लिपि में अंकित लेख है जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है. वह लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी. यहां मिली अधिकांश अवशेषों को राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली तथा अन्य जगह भेजा जा चुका है. एक संग्रहालय यहां भी है.

वैसे कालीबंगा के थेड़ (टीले) को देखने का अब कोई सार नजर नहीं आता है क्योंकि जो उत्खनन स्थल या खेत वगैरह के अवशेष थे, उन्हें मोमजामा डालकर मिट्टी से पाट दिया गया है. कहने को तो यह इन साइटों को मेह, बारिश अंधड़ आदि से बचाने के लिए किया गया लेकिन अब सवाल रह जाता है कि वहां कोई शोधार्थी, जिज्ञासु क्या देखे. मिट्टी के टीले, इधर उधर फैले ठीकर ठीकरियां या झाड झंखाड़? सिंधु घाटी सभ्यता में इस क्षेत्र के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कालीबंगा या उससे पहले भद्रकाली से लेकर सुल्तान पीर, माणक थेड़ी, रंग महल, बड़ोपल, कालीबंगा व पीलीबंगा या उससे आगे तक अनेक ऐसे थेड़ हैं जहां सभ्यता के अवशेष मिले हैं, इनमें से सात आठ तो बाकायदा सरकारी रूप से एतिहासिक साइट घोषित हैं.
सरस्वती नदी का तट! दरअसल यह सभ्यता एक नदी के किनारे विकसित हुई जिसे सरस्वती नदी माना जाता है. कालीबंगा के थेड़ से मिले अवशेषों के आधार पर कहा गया है कि लगभग 4600 वर्ष पूर्व यहाँ सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पाकालीन सभ्यता फल-फूल रही थी. यह नदी अब घग्घर नदी के रुप में है। सतलज उत्तरी राजस्थान में सम्माहित होती थी. सूरतगढ़ के निकट नहर-भादरा क्षेत्र में सरस्वती व दृषद्वती का संगम स्थल था. स्वंय सिंधु नदी अपनी विशालता के कारण वर्षा ॠतु में समुद्र जैसा रुप धारण कर लेती थी जो उसके नामकरण से स्पष्ट है. हमारे देश भारत में “र्तृधर सभ्यता” का मूलत: उद्भव विकास एवं प्रसार “सप्तसिन्धव” प्रदेश में हुआ तथा सरस्वती उपत्यका का उसमें विशिष्ट योगदान है. सरस्वती उपत्यका (घाटी) सरस्वती एवं हृषद्वती के मध्य स्थित “ब्रह्मवर्त” का पवित्र प्रदेश था जो मनु के अनुसार “देवनिर्मित” था. धनधान्य से परिपूर्ण इस क्षेत्र में वैदिक ॠचाओं का उद्बोधन भी हुआ। सरस्वती (वर्तमान में घग्घर) नदियों में उत्तम थी तथा गिरि से समुद्र में प्रवेश करती थी. ॠग्वेद (सप्तम मण्डल, २/९५) में कहा गया है-“एकाचतत् सरस्वती नदी नाम शुचिर्यतौ। गिरभ्य: आसमुद्रात।।” सतलज उत्तरी राजस्थान में सरस्वती में समाहित होती थी.

सी.एफ. ओल्डन ( C.F. OLDEN ) ने ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों के आधार पर बताया कि घग्घर हकड़ा नदी के घाट पर ॠग्वेद में बहने वाली नदी सरस्वती ‘दृषद्वती’ थी. तब सतलज व यमुना नदियाँ अपने वर्तमान पाटों में प्रवाहित न होकर घग्घर व हसरा के पाटों में बहती थीं. महाभारत काल तक सरस्वती लुप्त हो चुकी थी और 13वीं शती तक सतलज, व्यास में मिल गई थी. पानी की मात्र कम होने से सरस्वती रेतीले भाग में सूख गई थी. ओल्डन के अनुसार सतलज और यमुना के बीच कई छोटी-बड़ी नदियाँ निकलती हैं. इनमें चौतंग, मारकंडा, सरस्वती आदि थी. ये नदियाँ आज भी वर्षा ॠतु में प्रवाहित होती हैं. राजस्थान के निकट ये नदियाँ निकल कर एक बड़ी नदी घग्घर का रुप ले लेती हैं. आग चलकर यह नदी पाकिस्तान में हकड़ा, वाहिद, नारा नामों से जानी जाती है. ये नदियाँ अब सूख चुकी हैं – किन्तु इनका मार्ग राजस्थान से लेकर करांची और पूर्व कच्छ की खाड़ी तक देखा जा सकता है.
कैसे लुप्त हो गई इक सभ्यता?
एक जीता जागती सभ्यता अचानक कैसे लुप्त हो गई और बाद में किसने कालीबंगा को खोजा, इन दो सवालों के अलग अलग जवाब हैं. सरकारी भाषा में कहें तो 1922 में राखलदास बनर्जी व दयाराम साहनी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो व हड़प्पा (अब लरकाना, पाकिस्तान जिले में स्थित) में हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष खोजे गए जिनसे लगभग 4600 वर्ष पूर्व की प्राचीन सभ्यता का पता चला था. वहीं अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस सिंधु घाटी नामक इस उन्नत सभ्यता की पहली खोज कालीबंगा में 1914 में इटली के एलपी तैस्सितोरी ने की थी. सिंध में मुअन जो दरो की खुदाई तो 1922 में हुई थी. एलपीतैस्सितोरी ने कालीबंगा सहित लगभग सौ जगह खुदाई कराई थी, जिसमें कोई एक हजार पुरा वस्तुएं जमा की थीं. उन्होंने ही सबसे पहले कालीबंगा और यहां की पुरा सम्पदा को प्रागैतिहासिक घोषित किया था. इस विचार के अनुसार यह राखलदास बनर्जी और अलेक्जण्डर कनिंघम से बहुत पहले की बात है यानी इन लोगों द्वारा हडप्पा के काल निर्धारण से पहले की. कालीबंगा, तत्कालीन बीकानेर रियासत का गांव है और तैस्सितोरी ने इसकी खोज बहुत पहले ही कर ली थी.
उपलब्ध ऐतिहासिक, पुरातात्विक और वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि कालीबंगा भूकम्प से नष्ट हुआ भारतीय इतिहास का पहला शहर है. साइंस एज (अक्टूबर, 1984, नेहरू सेन्टर, मुम्बई ) में डाबीबीलाल ने कालीबंगा के भूकम्प को अर्लीएस्ट डेटेबल अर्थक्वेक इन इण्डिया (Earliest datable earthquake in India) कहा है. भूकम्प के कारण धरती में पड़ी दरारों से सरस्वती का पानी नीचे भूमिगत जलधाराओं में जाकर लुप्त हो गया. कालान्तर में मौसमी बदलावों से अकाल – सूखा पड़ने लगा और भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण अरावली पर्वतमाला ऊपर उठने लगी, जिससे सरस्वती की सहायक नदियों के रास्ते बदल गये और सरस्वती के बहाव क्षेत्र में टीले आकर जमने लगे. और धीरे-धीरे रेगिस्तान बढ़ने लगा. इसी रेगिस्तान में कालीबंगा, पत्तन मुनारा जैसे नगर 2500-1500 ईपू में नष्ट होकर जमींदोज हो गये.
nice
अच्छी जानकारी
कालीबंगा एक महान सभ्यता थी….लेकिन आज हमने क्या किया ?एक बिल्डिंग बना कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली …कालीबंगा का और भी सरक्षण करने की जरूरत है…चारों तरफ बिखरी सभ्यता को सहेजने की आवश्यकता है…
It is nice to see some historic information on your blog.
पीलीबंगा स्टेशन तो देख रखा है, कालीबंगा भी देखना है।
Dear Prithvi,
It is good information but i would like to see the article of Prof B B Lal refered to you in your post “earliest datable earthquake in India’ if you can provide a copy , it would be a great favour.
Bhuvan
Very informative article.
g8t bhai saab,kaalibanga ko suthre shabadon me saga diya.
इतिहास में रूचि होने के कारण दो बार कालीबंगा के उतखनित क्षेत्रों का भ्रमण कर चूका हूँ. विदेशी एतिहासिक स्थलों को देखने का भी अवसर मिला है. हमारे यंहा जितनी उपेक्षा देखने को मिली तो मौके पर ही लगा की कालीबंगा के पूर्वजों को जो सम्मान और शांति मिलनी चाहिए, उससे वे कोसों दूर है. जो चाहे वंहा से अवशेष ले जा सकता है. जो भग्नावेश हजारों बरसों तक मिटटी में दबे हुए सुरक्षित थे वे खुले में बदहाली के शिकार हो गए. आखिरीबार एक दशक पहले गया था. मोमजामे से ढकने का आपका आशय समझ नहीं पाया हूँ. अगर इसका मतलब काले पोलीथीन से ढकने से है तो उसकी दुर्गति के लक्षण १० पहले देख लिए थे. वो मोमजामा कम और चीथड़े अधिक लग रहे थे. खैर! एक बहुत ही अच्छे आलेख के लिए आपका आभार.
kalibanga ki khoj 1952 me P.A.Gosh and Uthkhanan B.B. Lal 1961 me kiya gya.
kali banga ke bare men main kewl aapni eetihas kee kitabon men pdha thaa
. kai atihasik stalon ka bhramn bhi kiya kalibnaga dekhne se rah gya tha. ab ise dekhne kee lalk jage hai. dekhen kab jana hota hai. aap ne achhi jankari di hai. dhanyabad
मैने अपनी बी.एड के दौरान कालीबंगा पर पाठ योजना बच्चों को करवा थी उसके कारण मुझे कालीबंगा को जानने का अवसर मिला
i had a chance to visit the site. I was shocked to see the site that the MOMJAMA ( polythene sheet) is cresting the problems. Due to the rainfall there is soil erosion the evedances are coming out.laying. The empty bottles of the liquor and narcotic drugs can tell the exact role and story of the ASI. What is teh life of theMOMJAMA……….in the temperature of 50 *c of MAy an June.. Role of ASI is unsatisfactory. Teh villager have make the passes from the site. The moter bikes run from the site. why the belongins of Kalibanga are laying in the other museum, why not in kalibanga
Yes,indeed it’s a matter of great concern! 😦
आपने कालीबगा के बारे मेँ अच्छी जानकारी दी है। आपका धन्यवाद
kalibanga ki khoj 1952 main amaraand ghos ne ki thi or utkhannan 1961-69 tak b.b and b. k. thapar ne kiya
bahut achchha lekh mila g.k. ki teyari me madad mili …thankas……….
thanks, your information is wright
Kalibanga is great in rajsthan
i like indus valley civilisation….
Kisi jagah K itihaas Par mitti daalne se Achha h waha kya hua Kese hua or usme ham kitne Sahi h Ye patta lagana. .. Baaki jo Bhagawan ki mraji (puratatvavibhag)
Esa ki kudali chehar ko bdaya Jana chhiye