देरी से आने पर सावण भी शर्माने लगा है. शायद यही कारण है कि वह थार में कभी एकसार या मूसलाधार नहीं बरस रहा ! मेह कभी रात में बरता है तो कभी दिन में बूंदाबांदी… जैसे दिल खोलकर नहीं बरस रहा हो.

जुलाई का पहला पखवाड़ा एक बार फिर थार में. दिल्ली से लेकर सूरतगढ़, सूरतगढ़ से नोहर-भादरा, श्रीगंगानगर,बीकानेर और अनूपगढ़ तथा कालीबंगा तक.. उत्तर पश्चिम के सारे थार में एक बार दोस्तों के साथ घूमे. भारतीय रेल, निजी गाड़ी, राजस्थान रोडवेज की बस.. बाइक अनेक तरह के वाहनों से.
जिस दिन थार की दहलीज पर पहुंचा, सावण (सावन, श्रावण) का पहला सूरज उग रहा है. पीलीबंगा से आगे शायद कहीं केंद्रीय कृषि फार्म के मीलों मील फैले खेतों से सूरज को देखा और प्रणाम किया. माहौल में हालांकि सावण जैसा कुछ नहीं है. उत्तरी भारत विशेषकर राजस्थान गर्मी से झुलस रहा है. 108 साल में सर्वाधिक गर्म दिन इसी दौरान रहा.
सावण के पहले हफ्ते में दो बार पारंपरिक राजस्थानी आंधी से सामना हुआ. राजस्थानी आंधी जिसमें पेड़ या कोई दरो दीवार नहीं टिक पाती. हर कहीं आंधी बालुई रेत के रूप में अपने हस्ताक्षर कर देती है.
हालांकि बाद में नोहर, श्रीकरणपुर, बीकानेर सहित अनेक इलाकों से छिटपुट मेह के समाचार आने लगे थे. नोहर में हाळी खेतों को जोतते दिखे तो महाजन के आगे खेतों में अच्छी हरियाली नजर आई. यह चौदह जुलाई है जब हम गंगानगर के गगनपथ पर एक दोस्त के पास बैठे हैं. कल की आंधी के बाद सुबह सुबह ही बूंदे गिर रही हैं. रूक रूक कर. लेकिन इन बूंदों में सावण वाली मस्ती और अल्हड़ता नहीं है.
एक बुजुर्ग कहते हैं कि वैसी बारिश होगी भी कैसे. यह तो शर्माता संकुचाता सावण है. .. इतनी देरी से आने पर मेह, सावण और इंद्र को भी तो कुछ शर्म, संकोच होता होगा. यही कारण है कि वह एकसार, मूसलाधार नहीं.. टुकड़ों टुकड़ों में, कभी दिन कभी रात में आ रहा है. समय पर आता तो झमाझम नहीं करता.
उनकी बात सही भी लगता है. एक मित्र कहते हैं कि शायद सालों साल बीत जाने के कारण समयचक्र भी बदल गया है. अब हमें यह मान लेना चाहिए कि बारिश सावण में नहीं अगले महीने में होगी.. यानी एक आध महीने का अंतर हमें अपने स्तर पर ही डाल लेना चाहिए ताकि ज्यादा दिक्कत नहीं हो. बात सही भी लगती है. कुछ तो है जो बदल गया है, प्रकृति या हम.. और कुछ बदलना भी होगा ताकि सावण में संकुचाता शर्माता सावण नहीं हो बल्कि झमाझम मेह मिले..
लेआउट में बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव न किया जाए तो बेहतर होगा। इससे ब्लाग की एक छवि, एक पहचान कायम करने में मदद मिलेगी। वैसे नया ले आउट भी अच्छा है।
पृथ्वी जी नमस्कार
अच्छा प्रयास है। लिखना जारी रखें।