एक उम्र ड्राइवरी करते हुए गुजारने वाले पन्नालाल की नज़र में पीलीबंगा की कहानी..
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मैंने शुरुआती ड्राइवरी बीकानेर और हनुमानगढ़ में की और साठ की दशक की शुरुआत में पीलीबंगा आया. कुछ नहीं होता था यहां .. कुछ घर, झोंपडियां और झाड़ झंगाड़. सांडे और गोयरे! पहली बार पीलीबंगा पहुंचा और पनवाड़ी से कैप्सटन सिगरेट का पैकेट मांगा. वो कुछ देर तक तो मेरे मुहं की ओर देखता रहा फिर बोला .. साहब यहां तो केप्सटन की एक सिगरेट पीने वाले नहीं आप डब्बी मांग रहे हैं. मैंने मन ही मन कहा, ‘ बेटे हम भी अंग्रेजों के जमाने के ड्राइवर हैं’.
दरअसल मेरे पिताजी रियासतकालीन बीकानेर रेल में मोटर ट्राली फीटर थे. उनका काम रेलवे निरीक्षण पर आने वाले अंग्रेज अधिकारियों की ट्रालियों को चलाना था. उसके बाद मैं भी ड्राइवरी करने लगा. पहले रशियन और आर्मेनियन ट्रेक्टर चलाए फिर जीप! 84 माडल की यह जीप आज भी दमदार है. सीमेंट या यूरिया के 10-15 कट्टे डालकर ले जाते हैं कहीं जवाब नहीं देती.
तो पीलीबंगा .. शुरुआती दिनों में यहां खूब दूर दूर तक झाड़ हुआ करते थे. हिरणों का वास था. डार की डार हिरण होते. झाडियों में गोयरे और सांडे मिलते .. सांप बिच्छु की तो बात ही क्या. लक्खूवाली थी.. पीलीबंगा तो बाद में ही बसा और फला फूला. भाखड़ा और उसके बाद आई राजकैनाल ने दुनिया पलट थी. धरती धान और सफेद सोना (नरमा कपास) उगलने लगी और देखते ही देखते पीलीबंगा बड़ी मंडी हो गई.
शिक्षा के प्रति लोगों का नजरिया बदल गया. रहन सहन बदल गया. अमीर गरीबी का छजर बदल गया!
बहुत कुछ बदल गया, मेरा सिगरेट ब्रांड भी.. अब देसी सिगरेट पीता हूं या बीडी. हां कोई दोस्त मिल जाए तो कुछ और भी हो जाता है.
महंगी नयी गाडियां चलने लगी हैं. लेकिन जान पहचान और संबंधों के कारण काम निकलता रहता है. किसी की मोहताजी नहीं. जीवन के 72 साल हो गए हैं. बस आंखें जवाब दे रही हैं धीरे धीरे. फिर भी जब तक चलेगा गाडी चलाते रहेंगे!
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पीलीबंगा से कालीबंगा तक के पांचेक किलोमीटर की यात्रा में पन्नालाल जी से हुई बातचीत पर आधारित. पीलीबंगा, उत्तर पश्चिमी राजस्थान का एक प्रमुख कस्बा है.
wonderful piece with a extra ordinary insight of happennings very near to us…bravo prthivi! keep on ..
पन्ना दादा (पन्ना लाल जी) से कब मुलाकात कर ली? आपने बताया तक नहीं.. खैर बहुत अच्छा लगा.
-vinod nokhwal