
थार के एक सिरे पर बसी हिंदुमलकोट नामक इस गांवनुमा आबादी की कई विशेषताएं हैं. यह बंटवारे से पहले राजस्थान का एक प्रमुख व्यापारिक स्थल था, कराची को जाने वाली रेल लाइन पर और थार के उन चुनिंदा जगहों में से एक जहां शुरुआती दौर में नगरपालिका गठित हुई.
भारत- पाकिस्तान की सीमा पर बसा हिंदुमलकोट आज गांव है. सीमा पर बसे अन्य गांवों की तरह ही. राजस्थान में पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा की शुरुआत यहीं से होती है. हिंदुमलकोट रेलवे स्टेशन के पुराने भवन में सुरक्षाकर्मी रहते हैं. यहां जो बाजार था उसके भग्नावेश गांव और स्टेशन स्थल के बीच देखे जा सकते हैं. जंगल उग आया है उनके आसपास. नगर पालिका अब नहीं है.
इतिहास और रिकार्ड के हिसाब से इस जगह की और भी विशेषताएं हैं. कहते हैं कि तत्कालीन बीकानेर रियायत का यह अंतिम सिरा था. यानी एक तरह से थार की सीमा भी. 1914 में कि बीकानेर रियासत के एक वजीर के नाम पर यह आबादी बसी थी और शीघ्र ही फलती फूलती गई. खास बात यह कि रेलवे संपर्क ने इसे बड़ा बना दिया. बारानी इलाका और पानी का अभाव होने के बावजूद यहां मंडी विकसित हुई. यहां से विशेषकर चने मद्रास तक जाने लगे. व्यापारियों और कारीगरों का एक वर्ग यहां बस गया जिसमें पगड़ी रंगने वालों से लेकर विभिन्न उत्पादों का कारोबार करने वाले शामिल थे.
तो एक समय हिंदुमलकोट इलाके के सबसे विकसित और चर्चित स्थानों में था. जिसका कुछ अंदाजा यहां के अवशेषों से लगाया जा सकता है.

यह अलग बात है कि बंटवारे और उसके बाद पाकिस्तान की दो जंगों ने सब बदल दिया. भोळेआली मंडी, मकलोटगंज, मिर्चनाबाद, समांसटा और कराची को जाने वाली रेल सेवा बंद हो गई. ये स्थान पाकिस्तान में चले गए और व्यापार को बड़ा नुकसान हुआ. बदलते हालात में महाजन भी ईधर उधर होते गए और हिंदुमलकोट नगरपालिका से फिर गांव पर आ गया.
दूसरी ओर बहावलपुर स्टेट है. श्रीगंगानगर और आसपास के इलाके में रहने वाले अनेक सिंधी और बणिया परिवारों का मूल स्थान इसी स्टेट में है.
हिंदुमलकोट के सामने ही रहने वाले पालासिंह, मोहन सिंह व अन्य अधेड़ बुजुर्ग आने जाने वालों को इतिहास के ये अंश सुनाते हैं. वे कहते हैं कि कराची को रेल सेवा बंद होने के बाद भी एक बार चालक को ध्यान नहीं रहा और वह सीमा के दूसरी ओर गाड़ी लेकर चला गया. थोड़ा आगे जाने पर उस भले मानस को गड़बड़ी का अहसास हुआ. वह लौट आया और उसी के बाद से आगे की रेल की पटरियों को उखाड़ दिया गया.
(जैसा हिंदुमलकोट में देखा और सुना. स्थानीय अखबारों में ऐसा छपा है लेकिन वह भी उन्हीं गिने चुने लोगों की बातों पर आधारित है)
पोस्ट बहुत सुन्दर लगी |
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bharatpur ke ya udaipur ke bare mein bhi kuch bataenge?
हाय क्या ही लोग हैं जो सीने को किताब बनाकर जीते हैं। अपनी जड़ों से प्यार के दीवाने ये लोग जब हमसे मिलते होंगे तो ज़रूर सोचते होंगे कि हमने कथित तरक़्क़ी के लिए कितनी क़ीमत चुकाई है। माटी के लिए इनके प्यार को फिर सलाम। पृथ्वी आप दिल निकाल कर रख देते हो। कहीं ऐसा न हो कि आपकी जगाई हूक में कभी दिल्ली में सब छोड़कर अपने गाँव डीडवाना नागौर फिर जा बसूँ।
अख़लाक़ उस्मानी
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दिल के करीब पहुंचने वाली सरल- सी पोस्ट ।
ऐसे ही लिखते रहें, राजस्थान के और देश के दूसरे हिस्सों के सरल, गुमनाम लोगों और उनकी जिंदगियों के बारे में । यह एक साहित्यिक प्रयास से कम नहीं ।
कोलकाता से प्रकाशित सुप्रसिद्ध लघुपत्रिका ’समकालीन सृजन’ के प्रबंध संपादक और वरिष्ठ हिंदी कवि मानिक बच्छावत इन्हीं हिंदूमल सिंह के नाती हैं जिनके नाम पर यह गांव बसाया गया . मानिक जी से अक्सर मैंने पुरानी बीकानेर रियासत की कहानियां सुनी हैं और रोमांचित हुआ हूं .
is blog ke baare me jitna likha jaaye, km hi hoga
पोस्ट बहुत सुन्दर लगी.
vinay kumar tiwari
suratgarh.
काफी दिलचस्प है। मैं भी यहां गया था 2006 में। मुझे बताया गया कि बंटवारे के वक्त लाशों से भरी पहली ट्रेन इसी स्टेशन पर आयी थी…..इसके अलावा किसी ने शायद ये भी बताया था कि फिल्म गदर की शूटिंग इसी इलाके में कहीं की गयी थी। ऐसी जगहों पर जाकर वीते वक्त को महसूस करना अच्छा लगता है…
शुक्रिया साब. 🙂
आज शाम को तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा, मन को छू गया, एक यात्रा तुम्हारे साथ गाव की करनी होगी, तुम्हारे तरफ का राजस्थान।
देखो कब संयोग बनता है, अभी तो तुम्हारे कांकड़ के बरास्ता ही सफर पर हूँ।
शुक्रिया सा, बिलकुल जब भी मन हो चलिए. घुमा लाते हैं. 🙂
my village