
डूब कर दम तोड़ते वन्य जीव
रेत का समंदर कहे जाने वाले थार यानी राजस्थान के एक इलाके विशेष में हिरण व नीलगाय आदि वन्य जीव नहरों में डूब कर मर रहे हैं. सुनने-पढ़ने में यह भले ही अटपटा लगे लेकिन गंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की एक कठोर सचाई है जिससे ग्रामीण कई पिछले वर्षों से निरीह भाव से दो चार हो रहे हैं. 50 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौडने वाला कृष्ण मृग शिकारियों नहीं, बहती नहरों का शिकार हो रहा है. उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में एलएनपी (नहर) का क्षेत्र जिसे 10,000 से अधिक वन्य जीवों की शरणस्थली कहा जाता है,में इस तरह की घटनाएं आम हैं. ग्रामीण लंबे समय से इस क्षेत्र की नहरों पर गऊघाट बनाने तथा इस क्षेत्र को कम्युनिटी रिजर्व घोषित करने की मांग कर रहे हैं लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.
एलएनपी क्षेत्र और हिरण
हनुमानगढ और गंगानगर जिले में फैले एलएनपी (लालगढ़ नान पैरेनियल) नहर क्षेत्र में हिरणों, नीलगायों के झुंडों का स्वच्छंद विचरण करते देखा जा सकता है. वाइल्डलाईफ के हिसाब से यह इलाका बेहद समृद्ध है. गंगानगर के उप वन संरक्षक ललित राणावत कहते हैं, ‘ निजी भूमि पर इतनी बडी संख्या में वन्य जीव एशिया में शायद ही कहीं और हों.’ काले हिरण तो हजारों हैं. इसके अलावा चिंकारा, खरगोश, लोमडी, सियार, काला तीतर, तीतर पाटा गोह व मोर जैसे जीव जंतु भी यहां बडी संख्या में हैं. यह क्षेत्र लखासर से लेकर लिखमीसर, दुलमाना, भगवानगढ, जोडकियां, लालेवाला, 64-69 एलएनपी, रतनपुरा, उडसर, डाबला व बुढा जोहड तक फैला है. दोनों जिलों में 468 वर्ग किलोमीटर में वन्य क्षेत्र है.
समस्या
विडंबना है कि थार के इस इलाके में हिरण अब प्यास से नहीं बल्कि डूबने से मर रहे हैं. दरअसल पिछले कुछ वर्षों में इलाके की नहरों को पक्का किया गया है. अब उनकी ढलान अंग्रेजी के ‘वी’ आकार में है जो बडी फिसलन वाली होती है. यही कारण है कि पानी पीने के लिए उतरने पर या दुर्घटनावश नहर में गिर जाने पर पशु विशेषकर हिरण बाहर नहीं निकल पाते और वहीं डूब कर मर जाते हैं. सितंबर 2006 में 23 हिरण एलएनपी नहर में डूबने से मरे. गंगनहर की एलएनपी के साथ-साथ भाखड़ा नहर की एलकेएस, एमओडी व एलजीडब्ल्यू शाखाओं में भी इस तरह की घटनाएं आम हैं. नहरें जब कच्ची थीं तो यह दिक्कत नहीं थी. इस इलाके में वन्यजीवों के लिए पानी का एक मात्र स्रोत नहरें ही हैं. इसके अलावा इन पशुओं के शिकारियों तथा वाहनों की चपेट में आना भी आम बात है. यहां तक कि जैतसर कृषि फार्म में मोरों व नीलगायों के शिकार या संदिग्ध परिस्थितियों में मौत अनेक बार चर्चा का विषय बन चुकी हैं. वैसे यह भी एक सचाई है कि अधिकाधिक भूमि के कमांड होने के बाद वन्य जीवों के लिए आश्रय स्थल घट रहा है. पानी के प्राकृतिक स्रोत नहीं रहे हैं. जीवों को पानी के लिए नहरों पर ही आना पडता है. किसान अपनी फसल बचाने के लिए इन्हें इधर उधर भगाते रहते हैं. इस संकट को मानव-वन्य जीव संघर्ष के रूप में भी देखे जाने की जरूरत है.

2007 में शिकार की 29 घटनाएं हुईं जिनमें से 26 काले हिरण के शिकार से जुड़ी हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या सहित कई प्रमुख सडक मार्ग इस इलाके में हैं और कुलांचे भरते वन्य जीव प्राय: उनकी चपेट में आ जाते हैं. क्षेत्र में कार्यरत जीव रक्षा सभा के आंकड़े कहते हैं कि बीते तीन साल में 150 से अधिक काले हिरण विभिन्न कारणों से असमय काल कल्वित हुए. विभाग में 1986 के बाद से भर्ती नहीं हुई है और स्टाफ नाम मात्र का है. गंगानगर जिले के लिए ही 25 गार्डों की मांग की गई है. फिलहाल इलाके में मात्र दो सुरक्षा गार्ड तैनात हैं जो भी उप वन्य संरक्षक (वन्य जीव) बीकानेर के अधीन आते हैं. क्षेत्र में कोई चौकी नहीं है. बीकानेर से स्टाफ के आने में ही 5-6 घंटे लग जाते हैं. उनके पास अच्छे वाहनों या अन्य साजो सामान का भी टोटा है. स्थानीय स्तर पर वन्य जीव चौकी स्थापित करने की बात लंबे समय से चल रही है लेकिन कुछ हुआ नहीं.
मांग
दोनों जिलों की 19 पंचायतों ने वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 36 एसडी के तहत अपने- अपने क्षेत्र को कम्युनिटी रिजर्व घोषित करने की मांग की है. अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के प्रदेश महासमंत्री अनिल धारणियां कहते हैं वन विभाग में जीव रक्षकों की भर्ती, गऊ घाट बनाना तथा वन्य जीव अपराध के मामलों के कडी कारवाई जैसे कदम उठाना भी जरूरी है. उनका कहना है कि इस दिशा में बहुत बार प्रयास किए जा चुके हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकल रहा. वैसे यह सही है कि बदलते वक्त के साथ समाज के लगभग हर वर्ग ने इस समस्या की ओर ध्यान देना शुरू किया है. अपवादों को छोड दें तो हर कोई अब वन्य जीवों के संरक्षण की बात करता है और इसके लिए प्रयास करता दिखता है.
समाधान
जानकारों का मानना है कि सबसे पहले हिरणों के लिए पानी की समस्या को निदान जेठ आषाढ़ से पहले करना होगा. इसके लिए उचित जगहों पर गऊघाट बनाए जा सकते हैं. इसके अलावा कई किसानों ने अपने खेतों में खेळियां (पानी की हौदी) बनाईं हैं जहां पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो. इस दिशा में स्थानीय स्तर पर प्रयासरत संगठन व कार्यकर्ता काफी मददगार साबित हो सकते हैं. वन्य जीवों की रक्षा के लिए पर्याप्त संख्या में गार्ड तथा यहां चौकियां स्थापित करनी होंगी तथा इस इलाके को कम्युनिटी रिजर्व घोषित करना व्यापक व स्थायी समाधान होगा.
टीका-टिप्पणी
क्षेत्र की वन संपदा अद्भुत है. एशिया में निजी भूमि पर इतनी समृद्ध वन संपदा एवं जीव शायद ही कहीं और हों. इनके बचाव के लिए कई प्रयास किए गए हैं. वन्यजीवों के लिए पानी की व्यवस्था का मुद्दा है. किसानों की अपनी समस्याएं हैं लेकिन क्षेत्र के किसान बहुत धैर्य वाले हैं आमतौर पर वे वन्यजीवों को नुकसान नहीं पहुंचाते. बडे स्तर पर सामूहिक प्रयास किए जा सकते हैं ताकि इस दिशा में आ रही परेशानियों और चुनौतियों से निपटा जा सके. (ललित राणावत, उप वन संरक्षक गंगानगर)
(कांकड ब्लाग, इस रपट में योगदान के लिए अनिल धारणियां लखासर, पुष्पेंद्र शर्मा रिडमलसर, कृष्ण चौहान गंगानगर का आभारी है. आप भी अपनी टिप्पणियां, सुझाव दे सकते हैं. स्वागत है.)
वन्य जीवों की इस तरह से मौत दहला देने वाली है. इलाके में नहरों के पक्का होने के बाद वन्य जीवों का उनमें डूबकर मरने का सिलसिला बहुत बढ़ गया है. इस संबंध में बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत है. आपने इस मुद्दे को उठाया.. बधाई
जहां राजस्थान में जीव प्यास से मरते हैं, वहीं श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ जिलों में हिरणों की डूबने से मौत हो रही है. सिंचाई विभाग ने नहरों को पक्का करने के साथ साथ इनमें पशुओं के गिरने से रोकने के लिए कोई इंतजाम नहीं क्यों नहीं किया ? आंख खोलने वाली है यह रपट. सराहनीय प्रयास..
It is the subject of investigation…….