बीरमाणा में डीजे
बीरमाणा, गांव के बारे में सुना तो बहुत था लेकिन जाना इस जनवरी में पहली बार हुआ. थार के इस इलाके के कुछ सबसे पुराने गांवों में से एक है बीरमाणा. कहा जाता है कि लगभग 250 साल पहले यह गांव एक कुएं के किनारे बसा था. गांव में अगर एक जाति विशेष की प्रधानता है वहीं कहा जाता है कि एक अन्य जाति यहां नहीं बसने के लिए अभिशप्त है. गांव में सरूपीर की मान्यता है और कहा जाता है कि यह गांव उन्हीं के आशीर्वाद से आबाद हुआ. राजस्थान के गंगानगर जिले में श्रीबिजयनगर से पच्चीसेक किलोमीटर तथा बिरधवाल हैड से 15 किलोमीटर दूर बीरमाणा गांव अब इंदिरा गांधी मुख्य नहर के उत्तर में है.
गांव की गुवाड़ आज भी है और कई गलियां विशेषकर मंदिर वाली गली तो कई गलियों जितनी चौड़ी है. पारंपरिक गांवों की तरह. गांव में अध्यापक विजयपाल जी ने बताया कि कुछ साल पहले गांव में 500 घरों की आबादी यानी लगभग 2000 जनसंख्या थी. अब थोडी ज्यादा ही होगी. शिक्षा, बिजली तथा स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से यह गांव किसी भी अन्य गांव से बेहतर है. रामस्वरूप मंगलाव ने बताया कि आसपास के इलाके में यही एक गांव है जहां 24 घंटे बिजली रहती है. एक एमबीबीएस भी गांव में बैठता है, सरकारी वैद जी तो हैं ही.
खैर गांव के चारों तरफ विशेषकर पूर्व और दक्षिण में खूब ऊंचे ऊंचे धोरे यानी टीले हैं. यह वही इलाका है जिसे सरस्वती नदी का बाण या किनारा कहा जाता है. कहा जाता है कि कभी यहां सरस्वती नदी बहती थी जो अब लुप्त हो गईं. उस काल की संस्कृति के अवशेष इन धोरों में अब भी मिलते हैं. नहरी प्रणाली आने के बाद अनेक लोग अपने खेतों में ढाणियां बनाकर रहने लगे, यही कारण है कि गांव में अनेक मकान आज खंडहरों के रूप में हैं. गांव में इंटरनेट की सुविधा है. मोबाइल सुविधा तो है ही.
अपना तो इस गांव में एक मित्र की शादी में जाना हुआ. एक निजी बस ने हमें रात भर की यात्रा के बाद सुबह आठेक बजे श्रीबिजयनगर उतार दिया. साथी लोगों को हाजत लगी, लेकिन इस मंडी में कोई सुलभ कांपलेक्स जैसी सुविधा तो है नहीं. हां, एक ढाबे वाले भले मानस ने मिनरल वाटर की बोतलें दे दी और कहा कि थोड़ी दूर खेतों में फ्रेश हो लो. और क्या विकल्प था. निजी बस से गांव पहुंचे, रास्ते से अनेक गांवों के बच्चे झोला लिए बस में चढे जो बीरमाणा गांव में पढने जाते हैं.
दिन में साथी लोगों ने रेतीले धोरों में घुमाई की और चार किलोमीटर दूर जाकर एक बार फिर इंदिरागांधी नहर को देखा जिसे थार की जीवनधारा कहा जाता है. मित्र की शादी में डीजे सहित सभी व्यवस्थाएं थीं. थार के एक गांव बीरमाणा में डीजे. कंप्यूटर के साथ. मित्र लोगों ने हिंदी (मरजाणी मरजाणी- बिल्लू बारबर), पंजाबी (ऐक गेड़ा गिद़दे विच होर), राजस्थानी (पल्लो लटके गोरी को) और हरियाणवी (हटजा ताऊ पाछै नै) जैसे नए नकोर गानों पर उस ठंडाती बालुई रेत पर खूब स्टेप्स किए. सुबह जब डीजे के स्पीकर आदि ऊंट गाडी पर लादे जा रहे थे तो फोटो भी खिंचवा ली. तो बीरमाणा में डीजे का सार यही है कि आधुनिकता धीरे धीरे थार के गांवों में भी दस्तक दे रही है.
great effort.mitti ki saundhi-2 khushhboo kise achhi nahi lagati.delhi mein rahate hue iss jajabe bachaye rakha. wah.. i have no words to express my feelings. thanks a lot
Regarding DJ in Birmana, I must to add this is deculturisation of raj. by adding some sought of foreign intake.as illustration once Sri Ganganagar changed it’s flora all xerophytic plant got disappeared. But today at any how this zone cant be reverse in to desert again.is it good sign for us ?
GOOD